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कृ॒ष्णग्री॑वा आग्ने॒याः शि॑ति॒भ्रवो॒ वसू॑ना॒ रोहि॑ता रु॒द्राणा॑ श्वे॒ताऽअ॑वरो॒किण॑ऽ आदि॒त्यानां॒ नभो॑रूपाः पार्ज॒न्याः ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कृ॒ष्णग्री॑वा॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वाः। आ॒ग्ने॒याः। शि॒ति॒भ्रव॒ इति॑ शिति॒भ्रवः॑। वसू॑नाम्। रोहि॑ताः। रु॒द्राणा॑म्। श्वे॒ताः। अ॒व॒रो॒किण॒ इत्य॑वऽरो॒किणः॑। आ॒दि॒त्याना॑म्। नभो॑रू॒पा॒ इति॒ नभः॑ऽरूपाः। पार्ज॒न्याः ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:24» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (कृष्णग्रीवाः) ऐसे हैं कि जिनकी खिंची हुई गर्दन वा खिंचा हुआ खाना निगलना वे (आग्नेयाः) अग्नि देवतावाले (शितिभ्रवः) जिनकी सुपेद भौंहें हैं, वे (वसूनाम्) पृथिवी आदि वसुओं के, जो (रोहिताः) लाल रंग के हैं, वे (रुद्राणाम्) प्राण आदि ग्यारह रुद्रों के, जो (श्वेताः) सुपेद रंग के और (अवरोकिणः) अवरोध करने अर्थात् रोकनेवाले हैं, वे (आदित्यानाम्) सूर्यसम्बन्धी महीनों के और जो (नभोरूपाः) ऐसे हैं कि जिनका जल के समान रूप है, वे जीव (पार्जन्याः) मेघदेवतावाले अर्थात् मेघ के सदृश गुणोंवाले जानने चाहियें ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि अग्नि की खींचने की, पृथिवी आदि को धारण करने की, पवनों को अच्छे प्रकार चढ़ने की, सूर्य आदि की रोकने की और मेघों की जल वर्षाने की क्रिया को जान कर सब कामों में सम्यक् निरन्तर उपयुक्त किया करें ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(कृष्णग्रीवाः) कृष्णा कर्षिका ग्रीवा निगरणं येषान्ते (आग्नेयाः) अग्निदेवताकाः (शितिभ्रवः) शितिश्श्वेताः भ्रूर्भ्रुकुटिर्यासां ताः (वसूनाम्) पृथिव्यादीनाम् (रोहिताः) रक्तवर्णाः (रुद्राणाम्) प्राणादीनाम् (श्वेताः) श्वेतवर्णाः (अवरोकिणः) अवरोधकाः (आदित्यानाम्) सूर्यसम्बन्धिकां मासानाम् (नभोरूपाः) नभ उदकमिव रूपं येषां ते (पार्जन्याः) मेघदेवताकाः ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ये कृष्णग्रीवास्त आग्नेयाः। ये शितिभ्रवस्ते वसूनां ये रोहितास्ते रुद्राणां ये श्वेता अवरोकिणस्त आदित्यानां ये नभोरूपास्ते च पार्जन्याः बोध्याः ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरग्नेराकर्षणक्रिया पृथिव्यादीनां धारणक्रिया वायूनां प्ररोहणक्रिया आदित्यानामवरोधिका मेघानां च जलवर्षिकाः क्रिया विदित्वा कार्येषूपयोज्याः ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी, अग्नीची वर आकर्षित करण्याची (खेचण्याची) क्रिया, पृथ्वीची धारण करण्याची क्रिया, वायूची अवरोध करण्याची व सूर्याची रोखण्याची क्रिया, तसेच मेघांची जलवर्षाव करण्याची (वर जाण्याची) क्रिया जाणून सर्व कामात त्यांचा सदैव सम्यक उपयोग करून घ्यावा.